रबी फसलों के अधिक उत्पादन के लिए टिप्स

कई राज्य सरकार द्वारा किसानों को रबी फसल की बुवाई में सहायता देने के लिए विभिन्न योजनाओं की शुरूआत की गई है। केंद्र और राज्य सरकार दोनों रबी फसलों के अधिक उत्पादन के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं। 

तिलहन फसलों में सरसों और सोयाबीन की बुवाई पर विशेष फोकस है जिसके लिए किसानों को सब्सिडी पर बीज उपलब्ध कराए जा रहे हैं। कुछ राज्यों में सरसों के उत्पादन के लिए प्रमाणित बीजों पर सब्सिडी का लाभ दिया जा रहा है जबकि कुछ राज्यों में किसानों को फ्री बीज वितरित किए जा रहे हैं ताकि तिलहन का उत्पादन बढ़ाया जा सके। 

ऐसे में, किसानों को उत्पादन बढ़ाने और अधिक मुनाफा कमाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण टिप्स का अनुसरण करना चाहिए।



खेत में गहरी जुताई करनी चहिये: 

रबी फसल को बोने से पूर्व खेत की गहरी जुताई करें। ट्रैक्टर, रोटावेटर, कल्टीवेटर आदि की सहायता से खेत की अच्छी तरह से जुताई करें। इससे कम श्रम और समय में खेत की तैयारी की जा सकती है। खेत की जुताई ढलान के आढे करें। इससे वर्षा का जल भूमि में अधिक अंदर तक जा सकेगा। जुताई करने के लिए सबसे अच्छा समय गर्मियों के मौसम में होता है।


बीजोपचार करें:

बुवाई से पहले बीजों का टीकाकरण एक महत्वपूर्ण कदम है। किसानों को सलाह दी जाती है कि उन्हें फसल को बुवाई से पहले ही उनके बीजों को उपचार करना चाहिए और इसके बाद ही बुवाई करनी चाहिए। बीजों का उपचार करने से फसल में रोगों और कीटाणुओं का प्रकोप कम होता है और उत्पादकता बढ़ती है।

समय पर बुवाई करें:

समय पर बुआई करना फसल के उत्पादन के लिए बेहद जरूरी है। रबी सीजन के बाद किसानों को उनके तय किए गए समय के अनुसार उनकी फसलों को बोना चाहिए। यदि सही समय पर बुवाई की जाती है तो फसल में अधिक उत्पादन होता है। अधिक या कम उत्पादन का मूल कारण फसल के बोने का समय होता है।

उन्नत बीज ही बोएं:

किसानों को सलाह दी जाती है कि वे हमेशा प्रमाणिक और उन्नत बीज ही खरीदें और बोएं। यह सुनिश्चित करने के लिए कि बीज उत्तम गुणवत्ता वाला हो, उन्नत गुणवत्ता वाले दुकानों से ही बीज खरीदने चाहिए। बीज खरीदते समय उसकी रसीद अवश्य लेनी चाहिए। प्रमाणिक बीज बोने से उत्तम गुणवत्ता वाले बीज सामान्य बीज की तुलना में 20 से 25 प्रतिशत अधिक उत्पादन प्रदान करते हैं। इसलिए, शुद्ध और स्वस्थ प्रमाणित बीज अच्छी पैदावार का आधार होते हैं। प्रमाणित बीजों का उपयोग करने से जहां एक ओर अच्छी पैदावार मिलती है, वहीं दूसरी ओर समय और पैसों की बचत होती है।

उचित बीज दूरी रखेंं:

फसल को सही ढंग से बोना बहुत महत्वपूर्ण होता है। इसके लिए आपको उचित बीज चुनने की जरूरत होती है। बीजों की कतार में बोने से फसल के उत्पादन में वृद्धि होती है। इसलिए, बुवाई के समय बीज की कतार में अच्छे बीज चुने जाने चाहिए। बीज की कतार से कतार के बीच समुचित दूरी रखने से फसल की अच्छी बढ़वार होती है और उत्पादन भी अधिक होता है। फसल के पौधों की दूरी भी उचित होनी चाहिए जिससे फसल की अच्छी बढ़त हो और उत्पादन प्राप्त हो।

फसल चक्र अपनाएं

किसानों को फसल चक्र का पालन करना चाहिए ताकि भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ा सकें और अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकें। फसल चक्र से तात्पर्य यह है कि बदल-बदल कर फसलें बोए जाएं। इससे फसलों पर कीटों और बीमारियों का प्रकोप कम होता है और फसलें स्वस्थ रहती हैं। रबी फसलों के लिए निम्नलिखित फसलों की खेती की जा सकती है: गेहूं, जौं, चना, सरसों, मटर, बरसीम, रिजका, हरे चारे की खेती, मसूर, आलू, राई, तंबाकू, लाही, और जई।

मिलवा फसलें लेंं: 

इंटर क्रोपिंग का अर्थ होता है कि एक ही खेत में एक साथ दो या दो से अधिक फसलों को उगाना, जो कि एक ही ऋतु में उगाई जाती हैं। इसे मिश्रित फसल भी कहा जाता है। जब दो या दो से अधिक फसलें निश्चित दूरी पर पंक्ति में या बिना पंक्ति के बोई जाती हैं, तो उसे इंटर क्रोपिंग कहा जाता है। इंटर क्रोपिंग के फायदे इसमें होते हैं कि जोखिम कम होता है। यदि आपने गेहूँ और चने की एक साथ फसल ली है, और इसमें से गेहूँ को नुकसान हुआ और चने को फायदा हुआ, तो आप चने के फायदे से गेहूँ के नुकसान को भर सकते हैं। इस तरह से इंटर क्रोपिंग जोखिम को कम करने में मददगार होता है।

दलहनी-तिलहनी फसलों में जिप्सम का प्रयोग करें:

वैज्ञानिकों ने गंधक की कमी को दूर करने और उत्तम उपज हासिल करने के लिए खेत में जिप्सम को 250 किलो प्रति हैक्टेयर की दर से बोने की सिफारिश की है। जिप्सम (70-80 प्रतिशत शुद्ध) में 13-19 प्रतिशत गंधक तथा 13-16 प्रतिशत कैल्शियम तत्व पाए जाते हैं। क्षारीय भूमि को सुधारने के लिए, मिट्टी की जीआर वैल्यू रिपोर्ट के अनुसार जिप्सम का उपयोग करना सुझावित है। दलहनी और तिलहनी फसलों में जिप्सम का उपयोग करने से अच्छे परिणाम मिलते हैं। दाने चमकीले होते हैं और 10-15 प्रतिशत अधिक उत्पादन होता है। इसके अलावा, जिप्सम का उपयोग फसलों को पानी से बचाने और क्षारीय भूमि को सुधारने के लिए भी किया जाता है।

फव्वारा व ड्रिप सिस्टम का उपयोग:

किसान भाइयों को फसलों की सिंचाई के लिए फव्वारा व ड्रिप सिंचाई और पाइप लाइन का उपयोग करना चाहिए। इससे अधिक सिंचाई कम पानी में संभव होगी। बूंद-बूंद जल का उपयोग करने से पूरी फसल को समान मात्रा में पानी मिलेगा जिससे अधिक क्षेत्रफल में कम पानी से सिंचाई होगी। इससे पानी की बचत होगी और उत्पादन भी बेहतर होगा।

क्रांतिक अवस्थाओं में करें सिंचाई:

फसल की क्रांतिक अवस्था का अर्थ फसल की ऐसी स्थिति है जिसमें फसल को निश्चित मात्रा में पानी मिलता है। यह क्रांतिक अवस्था अलग-अलग फसलों के लिए भिन्न होती है। उदाहरण के लिए, रबी की फसल गेहूं में बढ़ती है जिसके लिए 4 से 6 सिंचाइयां की जरूरत होती है ताकि फसल में पर्याप्त नमी बनी रहे। इस फसल की क्रांतिक अवस्था को 180 से 120 मिलीलीटर के बीच में रखा जाता है। क्रांतिक अवस्था में सिंचाई करने से कम पानी की स्थिति में भी फसल में अच्छी पैदावार होती है।

 मित्र कीटों का संरक्षण करें:

फसलों के कीटों को खेतों में संरक्षित करना उन वैज्ञानिकों के अनुसार अति आवश्यक है जो कृषि के क्षेत्र में काम करते हैं। यदि शत्रु एवं मित्र कीटों का अनुपात 2:1 है तो कीटनाशक दवाओं का प्रयोग नहीं करना चाहिए। मित्र कीटों की श्रृंखला में प्रेइंग मेंटिस, इंद्रगोपभृंग, ड्रैगन फ्लाई, किशोरी मक्खी, झिंगुर, ग्राउंड विटिल, रोल विटिल, मिडो ग्रासहापर, वाटर बग, मिरिड बग शामिल हैं जो फसलों और सब्जियों में पाए जाते हैं। ये कीट शत्रु व हानिकारक कीटों के लार्वा, शिशु एवं प्रौढ़ को प्राकृतिक रूप से खाकर नियंत्रित करते हैं। इनमें मांसाहारी कीट मित्र कीट होते हैं, जबकि शाकाहारी कीट फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। किसानों को यह ध्यान में रखना चाहिए कि फसल पर कीट देखते ही वे रासायनिक खाद का उपयोग न करें। इसलिए मित्र कीटों की पहचान करने व उनका संरक्षण करना चाहिए।

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